STATE TODAY|प्रदेश महामंत्री अर्जुन तिवारी ने प्रदेशवासियों एवं क्षेत्रवासियों को लोकपर्व छेरछेरा की हार्दिक बधाई दी

बिलासपुर/पंडरिया-: प्रदेश महामंत्री एवं जांजगीर जिला प्रभारी अर्जुन तिवारी ने प्रदेशवासियों एवं क्षेत्रवासियों को लोकपर्व छेरछेरा की बधाई एवं शुभकामनाएं दी है!इस अवसर पर उन्होंने सबकी सुख, समृद्धि, औऱ खुशहाली की कामना की है श्री तिवारी ने छेरछेरा पर्व पर अपने जारी शुभकामना संदेश में कहा है कि नई फसल के घर आने की ख़ुशी में पौष मास की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी तिहार मनाया जाता है!इसी दिन माता शाकम्भरी की जयंती भी हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है!पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिवस भगवान देवादिदेव महादेव ने माता अन्नपूर्णा देवी से भिक्षा मांगी थी इसलिए लोग धान के साथ-साथ साग-भाजी एवं फल का भी दान करते हैं!

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री श्री तिवारी ने बताया कि प्रदेश के ऊर्जावान एवं कर्मठ मुख्यमंत्री श्री भुपेश बघेल ने छेरछेरा लोकपर्व पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है! उनके प्रति आभार प्रकट किया है! श्री तिवारी ने आगे बतलाया कि अन्नदान का महापर्व छेरछेरा 17 जनवरी दिन सोमवार को धूमधाम से मनाया जाएगा छतीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है!इस दौरान लोग घर-घर जाकर अन्न दान मांगते हैं,वही गांव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं!

लोक परम्परा के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्यौहार मनाया जाता है!इस दिन सुबह से ही बच्चें, युवक व युवतियां हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगते हैं!वही युवाओं की टोलिया डंडा नृत्य कर घर-घर पहुँचती हैं, धान मिसाई हो जाने के चलते गांव में घर घर धान की भण्डार होता है जिसके चलते लोग छेरछेरा मांगने वालों को दान करते हैं!

इन्हें हर घर से धान चावल एवं नगद राशि मिलती है इस त्यौहार के दिन कामकाज पूरी तरह से बंद रहता है इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नही जाते हैं!

इसी दिन सभी घरों में आलूचाप, भजिया, तथा अन्य व्यंजन तथा पकवान भी बनाते है, इसके अलावा छेरछेरा के दिन कई लोग ख़िर, औऱ खीचड़ा का भंडारा रखते हैं जिसमे हजारों लोग प्रसाद ग्रहण कर पूण्य लाभ प्राप्त करते हैं!

ज्योतिष वास्तुविद के अनुसार इसी दिन अन्नपूर्णा देवी की पूजा भी की जाती है, जो भी जातक बच्चों को अन्न का दान करते हैं वह मृत्यु लोक के सारे बन्धनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं!इस दौरान मुर्रा-लाई, औऱ तिल के लड्डू समेत कई समानो की जमकर बिक्री होती है!

आज के दिन द्वार-द्वार पर “#छेरछेरा कोठी के धान ल हेरहेरा” की गूंज सुनाई देती है, पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफ़ी उत्साह हैं गौरतलब है कि इस पर्व में अन्नदान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है!

यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है, उत्सवधर्मिता से जुड़ा छतीसगढ़ का जनमानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता की सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है!

श्री तिवारी ने बताया कि छेरछेरा कथा कब औऱ कैसे शुरू हुआ

कथा छेरछेरा। बाबू रेवाराम की पांडुलिपियों से पता चलता है, की कलचुरी राजवंश के कोसल नरेश “कल्याणसाय” व मण्डल के राजा के बीच विवाद हुआ और इसके पश्चात तत्कालीन मुगल शासक अकबर ने उन्हें दिल्ली बुलावा लिया। कल्याणसाय 8 वर्षो तक दिल्ली में रहे, वहाँ उन्होंने राजनीति व युद्धकाल की शिक्षा ली और निपुणता हासिल की।
8 वर्ष बाद कल्याणसाय, उपाधि एवं राजा के पूर्ण अधिकार के साथ अपनी राजधानी रतनपुर वापस पंहुचे। जब प्रजा को राजा के लौटने की खबर मिली, प्रजा पूरे जश्न के साथ राजा के स्वगात में राजधानी रतनपुर आ पहुँची। प्रजा के इस प्रेम को देख कर रानी फुलकेना द्वारा रत्न और स्वर्ण मुद्राओ की बारिश करवाई गई और रानी ने प्रजा को हर वर्ष उस तिथि पर आने का न्योता दिया। तभी से राजा के उस आगमन को यादगार बनाने के लिए छेरछेरा पर्व की शुरुवात की गई। राजा जब घर आये तब समय ऐसा था, जब किसान की फसल भी खलिहानों से घर को आई, और इस तरह जश्न में हमारे खेत और खलिहान भी जुड़ गए।

लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है। गाँव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं और अन्न का दान माँगते हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को दान करते हैं।

‘छेर छेरा ! माई कोठी के धान ला हेर हेरा !’ यही आवाज़ आज प्रदेश के ग्रामीण अंचल में गूंजी और दान के रूप में धान और नगद राशि बांटी गई। राज्य का राजा घर आये या खेतो की फसल, एक तरह से जब खुशी आपके दरवाज़े दस्तक दे यही है छेरछेरा पर्व।

खुशी के इस पर्व की सभी को शुभकामनाएं।

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रवि शुक्ला / संपादक
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